एक आदमी की इच्छा होती है की उसे ऐसी पत्नी प्राप्त हो जो सिर्फ उसी से प्यार करे, पूरी तरह से पतिव्रता हो, एक आदमी का अपनी पत्नी को लेकर ये उम्मीदे लगाना सही भी है क्योंकि कोई भी रिश्ता सिर्फ प्यार और विश्वास के सहारे ही टिका होता है | ऐसे में किसी भी व्यक्ति को ये पसंद नहीं आएगा कि उसकी पत्नी किसी और पुरुष के बारे में सोचे, लेकिन क्या आप जानते है कोई भी पति अपनी पत्नी का पहला पति नहीं होता है | शास्त्रों में बताया गया है कि कोई भी पुरुष अपनी पत्नी का पहला पति नहीं बल्कि चौथा पति होता है |
प्राचीन वैदिक काल में एक स्त्री 4 पुरुषो से विवाह कर सकती थी और उस काल में पुरुष में किसी भी स्त्री से संबंध बना सकते थे | उस काल में समाज के इस नियम को ऋषि श्वेतकेतु ने एक सामाजिक बुराई के रूप में देखा और समाज में फैलती इस बुराई को समाप्त करने के लिए ऋषि श्वेतकेतु ने इस नियम को समाप्त करते हुए नया नियम बनाया जिसके अनुसार एक स्त्री का विवाह 4 पुरुषो की जगह एक ही पुरुष से किया जायेगा और इससे पहले उसका विवाह 3 देवताओ से किया जायेगा इससे यह बुराई भी समाप्त होगी और वैदिक काल की परम्परा भी बनी रहेगी |
यह परम्परा आज भी हमारे हिन्दू धर्म में निभाई जाती है | जब विवाह के समय मंत्रो का उच्चारण किया जाता है तो सबसे पहले स्त्री का अधिकार इन्द्र, चन्द्रमा और वरुण को सौपा जाता है, इसके बाद उसके पति को उसे सौपा जाता है | प्राचीन वैदिक रीती को बनाये रखने के लिए स्त्री का विवाह सांकेतिक रूप से इन देवताओ से किया जाता है | इन देवताओ से विवाह के बाद ही एक पति का अपनी पत्नी पर अधिकार आता है, यही वजह है कि प्रत्येक पति अपनी पत्नी का चौथा पति माना जाता है |
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि वैदिक काल के इसी नियम के कारण महाभारत काल में द्रौपदी ने पांडवो से विवाह किया था लेकिन द्रौपदी ने 5 पुरुषो से विवाह किया था इसी कारण कर्ण ने उसे त्रियाचरित्र कहा था |